तेरा ज़िक्र,तेरी फ़िक्र
सब छोड़ दूँगा मैं
बस इतना बता दे मुझे
मुझसे ज़्यादा कौन चाहेगा तुझे
क्यूँ गये तुम मुझे छोड़ के
क्यूँ गये, ऐसे रूठ के
कैसा ये सफ़र, तेरे बिना
ज़िंदगी जैसे थम गयी
कैसी ये जुदाई, है मैने पाई
तू ही बता मैं क्या करू
मेरे महबूब कयामत होगी
आज रुसवा, तेरी गलियों मे मोहब्बत होगी
तेरी नज़रें तो गीला करती हैं
तेरे दिल को भी सनम तुझसे शिकायत होगी
मेरे महबूब
ह जब मोहब्बत ही नहीं समझ पाए तुम
हमें क्या समझते
हमराज थे हम तेरे
फिर क्यू दिया फासला
मैं सिर्फ़ तेरा रहु
तेरा ही था फ़ैसला
तूने जो रुसवा किया
जीने का मकसद है क्या
कल तक मुकम्मल जो था
बिखरा है कैसे जहाँ
अब आ देख ले ये हाल मेरा
खुदा ना करे, कल ये हाल तेरा
तुझसे मिलने की दुआ करते हैं
अर्ज़ नज़रों से, तेरी खिदमत मे मेरी नफ़रत होगी
मेरे दिल का जो तूने हश्र किया
याद रखना तू भी चाहत मे कभी बेबस होगी
मेरे महबूब
ह खैर छोड़ो
अब हम क्यूँ उदास बैठे
खोया तो तुमने है
एक सच्चे चाहने वाले को