दुख सुख दोनो कुछ पल के, कब आए कब जाए
दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढल जाए
दुख सुख दोनो कुछ पल के, कब आए कब जाए
दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढल जाए
ओ शाम ढले ढल जाए
दुख तो हर प्राणी को होय, राम ने भी दुख झेला
धैर्या प्रेम से वन में रहे, प्रभु चौदह बर्ष की बेला
दुख तो हर प्राणी को होय, राम ने भी दुख झेला
धैर्या प्रेम से वन में रहे, प्रभु चौदह बर्ष की बेला
गर्मी में नादिया है खाली, सावन में जल आअए
दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढल जाए
ओ शाम ढले ढल जाए
दुख सुख दोनो कुछ पल के, कब आए कब जाए
दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढल जाए
ओ शाम ढले ढल जाए
प्रभु का सुमिरन जिसने करके, हर संकट को खेला
असली जीवन उसका समझो, ये जीवन का मेला
प्रभु का सुमिरन जिसने करके, हर संकट को खेला
असली जीवन उसका समझो, ये जीवन का मेला
रात आंधरेई भोर में सूरज, एसा फिर कल आए
दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढल जाए
ओ शाम ढले ढल जाए
दुख सुख दोनो कुछ पल के, कब आए कब जाए
दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढल जाए
ओ शाम ढले ढल जाए
आए परीक्षा दुख के क्षद में, मॅन तोरा घबराए
सह सह के दुख सहा ना जाए, आँखिया भर भर आए
आए परीक्षा दुख के क्षद में, मॅन तोरा घबराए
सह सह के दुख सहा ना जाए, आँखिया भर भर आए
राम का सुमिरन नारायण कर, बजरंगी बाल आए
दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढल जाए
ओ शाम ढले ढल जाए
दुख सुख दोनो कुछ पल के, कब आए कब जाए
दुख है ढलते सूरज जैसा, शाम ढले ढल जाए
शाम ढले ढल जाए
शाम ढले ढल जाए शाम ढले ढल जाए
शाम ढले ढल जाए शाम ढले ढल जाए