कलियुग की सीता की उलझन
मत पूछ मेरे मन बैरागी
जीवन भर का बनवास लिया हो
राम के घर को भी त्यागी
कलियुग की सीता की उलझन
हर कदम पे उसका हरण हुआ
हर मोड़ पे रावण को देखा
जब सैय्यम का धीरज टूटा
खुद लाँघ चलि लक्ष्मण रेखा
न रंग महल उसको भाया
वोह सारी खुशियाँ को तज भागी हाय
कलियुग की सीता की उलझन
नाकाम हुई बदनाम हुई
कल तक थी श्रद्धा की मूरत
दर दर भटकी मारी मारी
अस्वन में डूब गयी सूरत
काँटों पे आई नींद ज़रा
फूलों की बिस्तर पे जागी हाय
कलियुग की सीता की उलझन
मत पूछ मेरे मन बैरागी
जीवन भर का बनवास लिया
वो राम के घर को भी त्यागी
कलियुग की सीता की उलझन