ओ देश नये... एक परदेसी की कहानी
ओ देश नये तुझे थी सुनानी
ओ देश नये... मैं घर से निकला था
ये सोचके अच्छी जिंदगी होगी
अपनी तो पता नहीं... पर ये सोचा
अपनों की जिंदगी जरूर अच्छी होगी
ओ देश नये... ओ देश नये
ओ देश नये... ओ देश नये
ओ देश नये... मैं छोड़ आया था मेरे बूढ़े मां
बाप को भी जिनको जरूरत थी मेरे कंधों की
पर क्या करूं ओ देश नये...
मेरी परेशानियों ने उन कंधों को भी
तो झुका दिया था
ओ देश नये... मेरी बीवी जो हस्ती थी
तो लगता था सारी परेशानी एक तरफ
और फरिश्ते जैसी बीवी का साथ एक तरफ
ओ देश नये... ओ देश नये
ओ देश नये... ओ देश नये
ओ देश नये... याद आती है उसकी
तो आँसू रुकते नहीं
पर सोचता हूँ वो फरिश्ता है
और मेरे मां बाप के लिए
वो अब मेरा कंधा है
ओ देश नये... ओ देश नये
ओ देश नये... ओ देश नये
ओ देश नये छोड़ आया मेरे दोस्त
मेरे रिश्तेदार... मेरी गाड़ी
जो शुरू जरूर होती थी पर लगती थी थोड़ी देर
और वो सब कुछ छोड़ आया
जिसमें मिलता था सुकून
ओ देश नये छोड़ना पड़ा इन सबको
क्योंकि दौलत कमानी थी...
ओ देश नये... ओ देश नये
ओ देश नये... ओ देश नये
ओ देश नये... हस्ते हैं हम कमाने के लिए
अपनों की बहुत सारी खुशियाँ पाने के लिए
सोचता हूँ हर रात वो सुबह कब होगी
जब मैं जाऊंगा एयरपोर्ट आएंगे सब लोग... लेने मुझे
माँ बाप फिर से रखेंगे कंधों पे हाथ मेरे
ओ देश नये फिरसे देखूंगा वो फरिश्ते की हंसी
ओ देश नये... ओ देश नये
फिर से जीते हैं हम पूरे दिल से
ओ देश नये... ओ देश नये
एक ज़माने के बाद...
ओ देश नये... ओ देश नये