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Bhupinder Singh - Logon Ke Ghar Men Rahta Hoon Lyrics



Bhupinder Singh - Logon Ke Ghar Men Rahta Hoon Lyrics
Official




लोगों के घर में रहता हूँ
कब अपना कोई घर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ
कब अपना कोई घर होगा
दीवारों की चिंता रहती है
दिवार में कब कोई दर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ

सब्जी मंडी बाप का घर है
फूल बंगश पे मामा का
सब्जी मंडी बाप का घर है
फूल बंगश पे मामा का
श्याम नगर में चाचा का घर
चौक पे अपनी श्यामा का
मइके और ससुराल के आगे
अरे मइके और ससुराल के आगे
और भी कोई घर होगा
मइके और ससुराल के आगे
और भी कोई घर होगा
दीवारों की चिंता रहती है
दिवार में कब कोई दर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ

हो ओ इच्छाओं के भीगे चाबुक
चुपके चुपके सहता हूँ
इच्छाओं के भीगे चाबुक
चुपके चुपके सहता हूँ
दूजे के घर यु लगता है
मोज़े पहने रहता हु
नंगे पाँव आँगन में
अरे नंगे पाँव आँगन में
कब बैठूँगा कब घर होगा
नंगे पाँव आँगन में
कब बैठूँगा कब घर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ
कब अपना कोई घर होगा
दीवारों की चिंता रहती है
दिवार में कब कोई दर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ
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लोगों के घर में रहता हूँ
कब अपना कोई घर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ
कब अपना कोई घर होगा
दीवारों की चिंता रहती है
दिवार में कब कोई दर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ

सब्जी मंडी बाप का घर है
फूल बंगश पे मामा का
सब्जी मंडी बाप का घर है
फूल बंगश पे मामा का
श्याम नगर में चाचा का घर
चौक पे अपनी श्यामा का
मइके और ससुराल के आगे
अरे मइके और ससुराल के आगे
और भी कोई घर होगा
मइके और ससुराल के आगे
और भी कोई घर होगा
दीवारों की चिंता रहती है
दिवार में कब कोई दर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ

हो ओ इच्छाओं के भीगे चाबुक
चुपके चुपके सहता हूँ
इच्छाओं के भीगे चाबुक
चुपके चुपके सहता हूँ
दूजे के घर यु लगता है
मोज़े पहने रहता हु
नंगे पाँव आँगन में
अरे नंगे पाँव आँगन में
कब बैठूँगा कब घर होगा
नंगे पाँव आँगन में
कब बैठूँगा कब घर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ
कब अपना कोई घर होगा
दीवारों की चिंता रहती है
दिवार में कब कोई दर होगा
लोगों के घर में रहता हूँ
[ Correct these Lyrics ]
Writer: Gulzar, Kanu Roy
Copyright: Lyrics © Royalty Network




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