नज़्म उलझी हुई है सीने में
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते फिरते हैं तितलीओ की तरह
लफ्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नही
नज़्म उलझी हुई है सीने में
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम
हो कब से बैठा
हा आ आ आ आ आ आ आ
हो कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम
सदा काग़ज़ पे लिख के नाम तेरा
हो कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम
सदा काग़ज़ पे लिख के नाम तेरा
बस तेरा नाम तेरा नाम
बस तेरा नाम ही मुकम्मिल हैं
इस से बेहतर भी नज़्म क्या होगी
इस से बेहतर भी नज़्म क्या होगी