पहचान तो थी पहचाना नहीं मैंने
अपने आप को जाना नहीं
पहचान तो थी पहचाना नहीं मैंने
अपने आप को जाना नहीं
पहचान तो थी
जब धुप बरसती है सर पे तो
पाव में छाँव खिलती है
मैं भूल गई थी छाँव अगर
मिलती है तो धुप में मिलती है
इस धुप और छाँव की खेल में क्यों जीनेका
इशारा समझा नहीं
पहचान तो थी पहचाना नहीं मैंने
अपने आप को जाना नहीं
पहचान तो थी
मैं जागी रही कुछ सपनो में और
जागी हुई भी सोई रही
जाने किन भूलभुलैया में कुछ
भटकी रही कुछ खोई रही
जिनके लिए मैं मरती रही जीनेका
इशारा समझा नहीं
पहचान तो थी पहचाना नहीं मैंने
अपने आप को जाना नहीं
पहचान तो थी पहचाना नहीं मैंने
अपने आप को जाना नहीं
पहचान तो थी