आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
तू अगर मुझसे खफा है तो छुपाता क्यूँ है
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
गैर लगता है ना अपनों की तरह मिलता है
गैर लगता है ना अपनों की तरह मिलता है
गैर लगता है ना अपनों की तरह मिलता है
तू जमाने की तरह मुझको सताता क्यूँ है
वक़्त के साथ खयालात बदल जाते हैं
वक़्त के साथ खयालात बदल जाते हैं
वक़्त के साथ खयालात (वक़्त के साथ खयालात)
बदल जाते हैं ये हकीकत है (बदल जाते हैं ये हकीकत है)
मगर मुझको सुनाता क्यूँ है
एक मुद्दत से जहां काफिले गुज़रे ही नहीं
एक मुद्दत से जहां काफिले गुज़रे ही नहीं
एक मुद्दत से जहां काफ़िले गुज़रे ही नहीं
ऐसी राहों ऐ चरागों को जलाता क्यूँ है
तू अगर मुझसे खफा है तो छुपाता क्यूँ है
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है