किस को कातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ
किस को कातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ
सब यहाँ दोस्त ही बैठ हैं किसे क्या समझूँ
सब यहाँ दोस्त ही बैठ हैं किसे क्या समझूँ
वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीं होता था
वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीं होता था
अब हक़ीकत नज़र आए तो उसे क्या समझूँ
अब हक़ीकत नज़र आए तो उसे क्या समझूँ
सब यहाँ दोस्त ही बैठ हैं किसे क्या समझूँ
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ
जुल्म ये है के है यक़्ता तेरी बेगानारवी
जुल्म ये है के है यक़्ता तेरी बेगानारवी
लुत्फ ये है के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ
लुत्फ ये हैं के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ
किस को कातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ
सब यहाँ दोस्त ही बैठ हैं किसे क्या समझूँ