दफना दिए जंगल पर्बत,
कफ़न है रेगिस्तान:
रोगी नदियां,
बेबस कुदरत,
येतू ने का कर दिया इंसान!
बूँदें ५ 4
* बूँदों को पल-पल तरसे
आँसू रेतीला बरसे
बद्रा कारे आए ना
तपते सूरज में जलते
गिद्दों के साए चलते
सांसें ही थम जाए ना.... जाए ना
लहराते, बलखाते, खेतों की बस यादें हैं
चर-चर-चर गैया थी भर-भर-भर नदिया भी प्यारी थी
जा-जा के गिरिजा घरों में, मंदिरों में, मस्जिदों में
माथा टेकते,
चूमते ज़ी!
माँगे दुआएं,
झोली फैलाएं
पानी दे पानी दे >>4 ... पानी... पानी
प्यासा ढूंडे दर-दर पे
निकला जाने कब घरसे
लौटेगा भी जाने ना
** बूँदों की किल्लत इतनी
मरने की मिन्नतें उतनी
बढ़ती जाए... जाए हाय!
शहरों में नहरों ने खुशहाली बाँटी है
खल- खलते नलों से
छल-छलके प्यालों में
सरर-सरर-सरर-सरर करते फब्बरे हैं
जा-जा के, जहाँ भी हो आबादी, जहाँ दिखे बरबादी...
रोक ले तू! टोक ले तू! रोक ले!
ना गंवा! बेवजह ना गंवा!
पानी यह ज़िंदगानी है!
पानी है पानी है ...पानी
के सी लॉय
07/06/4 - 09/06/24