मैं कासे कहूँ पैर अपने जिया की
माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की
माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की माई री
ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना
तन मन भीगो दे आके ऐसी घटा कोई छाये ना
मोहे बहा ले जाए ऎसी लहर कोई आये ना
ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना
पड़ी नदिया के किनारे मैं प्यासी माई री
माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की माई री
पी की डगर मैं बैठे मैला हुआ री मेरा आंचरा
मुखड़ा है फीका-फीका नैनों में सोहे नहीं काजरा
कोई जो देखे मैय्या प्रीत का वासे कहूँ माजरा
पी की डगर मैं बैठे मैला हुआ री मेरा आंचरा
लट में पड़ी कैसी बिरहा की माटी माई री हा
माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की माई री
आँखों में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावरे
बैयाँ की छैयां आके मिलते नहीं कभी सांवरे
दुःख ये मिलन का लेके काह करूँ कहाँ जाऊं रे
आँखों में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावरे
पाकर भी नहीं उनको मैं पाती माई री हा
माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की माई री