वो जो मिलते थे कभी हंहंहं
वो जो मिलते थे
कभी हम से दीवानों की तरह
आज यु मिलते है
जैसे कभी पहचान न थी
वो जो मिलते थे कभी
देखते भी है तो
यु मेरी निगाहों में कभी
अजनबी जैसे मिला
करते है राहों में कभी
इस क़दर उनकी नज़र
हम से तो अंजान न थी
वो जो मिलते थे कभी
हमसे दीवानों की तरह
आज यु मिलते है
जैसे कभी पहचान न थी
वो जो मिलते थे कभी
एक दिन था कभी युही
जो मचल जाते थे
खेलते थे मेरी ज़ुल्फो से बहल जाते थे
वो परेशां थे मेरी ज़ुल्फ़ परेशां न थी
वो जो मिलते थे कभी
वो मोहब्बत वो शरारत मुझे याद आती है
दिल में एक प्यार का तूफान उठा जाती है
थी मगर ऐसी तो उलझन में
मेरी जान न थी
वो जो मिलते थे कभी
हम से दीवानों की तरह
आज यु मिलते है
जैसे कभी पहचान न थी
वो जो मिलते थे कभी