महबूबा महबूबा मेरी महबूबा, महबूबा मेरी महबूबा
जबसे तुझे देखा है, जबसे तुझे चाहा है
कुछ होश नही दुनिया का, महबूबा मेरी महबूबा
जबसे तुझे देखा है, जबसे तुझे चाहा है
कुछ होश नही दुनिया का, महबूबा मेरी महबूबा
शायर जो तुझे देखे तो ग़ज़ल कह डाले
शायर जो तुझे देखे तो ग़ज़ल कह डाले
तुझे हुस्न का जिंदा ताजमहल कह डाले
बिजली की चमक सूरज की दमक
है नूर तेरी आँखों का महबूबा
महबूबा मेरी महबूबा
जबसे तुझे देखा है, जबसे तुझे चाहा है
कुछ होश नही दुनिया का, महबूबा मेरी महबूबा