ओ माटी के पुतले इतना न कर तू गुमान
पल भर का तू मेहमान
माटी के पुतले
तूने प्रभु को धन में ढूँढा कभी न अपने मन में ढूँढा
भूल गया माया के बन्दे तुझ में बसे भगवान
ओ माटी के पुतले इतना न कर तू गुमान
पल भर का तू मेहमान
माटी के पुतले
मालिक से कुछ छुपा नहीं है कौन है जग में कैसा
मालिक तो है प्यार का भूखा लोग चढाये पैसा
धन के लोभी यह न जाने क्या मांगे भगवान
ओ माटी के पुतले इतना न कर तू गुमान
पल भर का तू मेहमान
माटी के पुतले
जब है वोही बनानेवाला तू है कौन मिटानेवाला
छोड़ दे उसपे सारी बातें ओह मूरख इंसान
ओ माटी के पुतले इतना न कर तू गुमान
पल भर का तू मेहमान
माटी के पुतले