क्यूँ खुदा ने दी लक़ीरें जिसमें ज़ाहिर नाम नहीं तेरा
लिख रहा हू दर्द सारे, यूँ तो शायर नाम नहीं मेरा
इतना भी क्या बेवफ़ा कोई होता है
ये सोचकर रात भर दिल ये रोता है
असल में तुम नहीं हो मेरे, तुम नहीं हो मेरे
तुम नहीं हो मेरे, नहीं हो मेरे
तुम नहीं हो मेरे, तुम नहीं हो मेरे
तुम नहीं हो मेरे
आसमाँ से क्या ख़ता हुई तारा उसका टूटा क्यूँ
लोग मुझसे पूछते हैं, साथ अपना छूटा क्यूँ
क्या मजबूरियाँ कैसी ये दूरियाँ दिल ये समझे ना
होते हैं प्यार में ऐसे भी इम्तिहाँ मैंने अब जाना
ख़ाब ही बस रह गए हैं जिनमें हो तुम हमसफ़र मेरे
असल में तुम नहीं हो मेरे, तुम नहीं हो मेरे
तुम नहीं हो मेरे, तुम नहीं हो मेरे
तुम नहीं हो मेरे, तुम नहीं हो मेरे
तुम नहीं हो मेरे
ये सोचकर रात भर दिल ये रोता है
असल में तुम नहीं हो मेरे, तुम नहीं हो मेरे
तुम नहीं हो मेरे, नहीं हो मेरे