हे मात मेरी हे मात मेरी
हे मात मेरी हे मात मेरी
कैसी यह देर लगाई दुर्गे
हे मात मेरी हे मात मेरी
भव सागर में घिरा पड़ा हूँ
काम आदि गृह में घिरा पड़ा हूँ
मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ
हे मात मेरी हे मात मेरी
ना मुझ में बल है, ना मुझ में विद्या,
ना मुझ ने भक्ति ना मुझ में शक्ति
शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ,
हे मात मेरी हे मात मेरी