किशन कन्हाई जशोदा के घर आनंद घनो बरसावे
जनम दाइिनी मुख देखन को तरस तरस रह जाए
किशन कन्हाई जशोदा के घर आनंद घनो बरसावे
अपनी सूत का चित बनाती मन ही मन अनुमान लगाती
कितना बड़ा हो गया हो गा लल्ला खड़ा हो गया होगा
अब तो पाव चलता होगा गिरता और संभलता होगा
मैया के संग जशोदा के आँगन मे दौड़ लगता होगा