सकल जतन करके भई मंदोदरी हताश
दंहि को दिखे नहीं कंठ काल को पाश
अति भयभीत अमंगल सो भई पति की करनी पर पछतावे
इष्ट को कोई अनइष्ट न होई सो मन ही मन निज इष्ट मनावे
मूढ़ भयो दस मूढ़न वारों ताही मूढ़ के जो समझावे
जान की रेवा ले आयो रे जानकी रावण को अब कौन बचावे