वो कौन थी
तमाम शहर उस के हुस्न में गुम था
वो क्या गयी
के फिर तो मुस्तक़िल फ़िज़ा का मौसम था
वो कौन थी
तमाम शहर उस के हुस्न में गुम था
हाँ वो क्या गयी
के फिर तो मुस्तक़िल फ़िज़ा का मौसम था
वो ख्वाब थी नींद थी खुस्बु थी
क्या थी वो
क्या थी वो
वो कौन थी
तमाम शहर उस के हुस्न में गुम था
हाँ वो क्या गयी
के फिर तो मुस्तक़िल फ़िज़ा का मौसम था
किसी से ना मिलती
ना वो बात करती
मगर मुस्कराहट
निगाहों में होती
वो आई थी जैसे
कहीं आसमान से
किसी कहकशां से
ना जाने कहाँ से
जाने कहाँ से
हो वो कौन थी
तमाम शहर उस के हुस्न में गुम था
वो क्या गयी
के फिर तो मुस्तक़िल फ़िज़ा का मौसम था
वो आँचल समइते
किताबें उठाए
चली जा रही है
निगाहें छुपाए
बोहत शोक़ से मैं
क़रीब उसके जाता
वो नज़रें दिखाती
तो कुछ कह ना पाता
कुछ कह ना पाता
जाने क्या था उन आँखो में
दिल की दिल में रह गयी
वो कौन थी
तमाम शहर उस के हुस्न में गुम था
हाँ वो क्या गयी
के फिर तो मुस्तक़िल फ़िज़ा का मौसम था
वो ख्वाब थी नींद थी खुस्बु थी
क्या थी वो
क्या थी वो
वो कौन थी
तमाम शहर उस के हुस्न में गुम था
हाँ वो क्या गयी
के फिर तो मुस्तक़िल खीज़न का मौसम था
हाँ वो कौन थी